"अद्वैतवाद् का मूलाधार"
(माण्डूक्योपनिषद्)
माण्डूक्योपनिषद् अथर्ववेदीय ब्राह्मण भाग के अन्तर्गत है। इसमें कुल बारह मन्त्र हैं। श्री गौडपादाचार्य जी ने इस पर कारिकाओं की रचना कर इसका महत्व और भी बढ़ा दिया है। कारिका और शाङ्कर भाष्य के सहित यह उपनिषद् अद्वैतसिद्धान्त रसिकों के लिये परम आदरणीय हो गया है। इन कारिकाओं को अद्वैत सिद्धान्त का प्रथम निबन्ध भी कहा जा सकता है। शङ्कर के अद्वैतवाद का मूल आधार भी यही उपनिषद् है। कारिकाओं की रचना बड़ी ही उद्दात्त और मर्मस्पर्शिनी है तथा अद्वैतसिद्धान्त की आधारशिला है।
कारिकाकार के अनुसार पूर्णकाम भगवान् को सृष्टि रचना का कोई प्रयोजन नहीं है यह तो उनका स्वभाव ही है। अतः यह जो कुछ भी प्रपञ्च है यह बिना हुआ ही भास रहा है।
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